छठ पूजा Chhath Puja छठ महापर्व श्रद्धा और सूर्यदेव की उपासना का पर्व, जल के प्रति Amazing श्रद्धा 2024

छठ पूजा Chhath Puja छठ महापर्व

छठ पूजा बिहार का एक महत्वपूर्ण त्योहार है यह पर्व प्राचीन और लोकप्रिय है जिसे मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है इसकी जडे पूरे भारत भर में फैली हुई है, यह हिंदू का पर्व है और यह पर्व विशेष रूप से बिहार में मनाया जाता है बिहार के लोग के लिए छठ सबसे कठिन और महत्वपूर्ण पर्व है। यह पूजा सूर्य देवता और छठ माता को किया जाता है, छठ पूजा को विशेष रूप से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को ही मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता के लिए पूजा और प्रार्थना का एक विशेष अवसर होता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

छठ पूजा को भारत में बहुत पहले से ही मनाया जाता है माना जाता है कि छठ पूजा का इतिहास महाभारत काल से और प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह त्योहार वैदिक काल से भी पहले मनाया जाता था। वैदिक साहित्य में भी सूर्य देवता की पूजा का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि सूर्य देवता को अर्घ्य देने की परंपरा तब से शुरू हुई, जब कर्ण ने सूर्य देवता को अपनी मां कुंती की कृपा से अपने पास बुलाया था। इसके अलावा, छठ पूजा का संबंध सीता और राम के साथ भी जोड़ा जाता है, जब सीता ने राम के लिए सूर्य देवता की आराधना की थी। बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व है यह माना जाता है कि इस क्षेत्र में छठ पूजा की शुरुआत एक स्थानीय ब्राह्मण परिवार द्वारा की गई थी।

भौगोलिक संदर्भ

बिहार की भौगोलिक स्थिति छठ पूजा के शुभ अवसर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इस पर्व को बहुत अच्छे से मानते हैं। बिहार राज्य गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है यह राज्य कृषि प्रधान है बिहार की उपजाऊ मिट्टी और यहां की जलवायु ने इस क्षेत्र को कृषि के लिए अनुकूल बना दिया जब बिहार के लोगों को छठ करना होता है तो वह गंगा नदी के किनारे, नदी के किनारे, सोन नदी के किनारे, तलाव, पोखरा, इत्यादि स्थान पर जाकर इस पर्व को जी जान से मानते है यानी की इस पर्व में बिहार के लोग लिन होकर मनाते है।

बिहार के विभिन्न जिलों में छठ पूजा के विभिन्न रूप देखे जाते हैं। पटना, गया, भागलपुर, रोहतास, कैमूर, आरा, बक्सर, भभुआ, औरंगाबाद, दरभंगा, भोजपुर और भी इत्यादि जिले में इस पूजा का विशेष महत्व है। यहाँ के लोग इस दिन को बड़े श्रद्धा भाव से मनाते हैं, और इसके लिए विशेष तैयारियाँ की जाती हैं।

छठ पूजा की तैयारी

बिहार में छठ पूजा की तैयारी बहुत जोर सोर से की जाती है, छठ पूजा की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू होती है हमारे इलाके में जहां पर भी छठ होती है वहां पर जाकर घाट बनाया जाता है इस पूजा में संतान की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना के लिए व्रत किया जाता है।छठ पूजा का आयोजन लगभग चार दिनों तक चलता है।

  • नहाय-खाय :- छठ पूजा के पहले दिन व्रति (व्रती) स्नान करती है और मन के शुद्धता के साथ कद्दू-भात का भोग बनाती है।
  • खरना :- छठ पूजा के दूसरे दिन दिनभर का उपवास रखकर शाम को नहाकर गुड़, चावल और खीर का भोग बनाकर ग्रहण किया जाता है।
  • संध्या अर्घ्य :- छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती है।
  • सुबह अर्घ्य :- छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के समय फिर से अर्घ्य दिया जाता है, जो पूजा का अंतिम चरण होता है।

छठ पूजा की विधि

पूरे भारत भर में छठ पूजा की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है कोई भी स्त्री या पुरुष जो व्रत करता है वह शुद्ध वस्त्र पहनता है और विशेष पूजन सामग्री जैसे ताजे फल, बांस की टोकरी, कद्दू, सूप और नारियल लेकर नदी के किनारे, तालाब के किनारे, नहर के किनारे, सोन नदी के किनारे और इत्यादि स्थान पर की जाती है। यहाँ, वह सूर्य देवता का ध्यान करते हुए अर्घ्य देती है। अर्घ्य देने के समय विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।

छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है। इस अवसर पर लोग एकत्रित होते हैं, एक-दूसरे की मदद करते हैं, और साथ में पूजा अर्चना करते हैं। यह त्योहार पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का एक माध्यम भी है। बिहार में छठ पूजा के दौरान कई सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं। विभिन्न स्थानों पर लोक संगीत, नृत्य और नाटक का आयोजन किया जाता है, जो इस पर्व को और भी मनमोहक बनाता है।

समापन

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जो न केवल धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह बिहार की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता का भी परिचायक है। यह पूजा न केवल सूर्य देवता की आराधना करती है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सुख और समृद्धि की कामना करती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान कैसे करना चाहिए और अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। बिहार की संस्कृति में यह पर्व एक विशेष स्थान रखता है, और इसकी महत्ता हर वर्ष बढ़ती जा रही है।

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